साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3564
जयपुर, राजस्थान
1952
चाँद एक पुरानी पीली बड़ी-सी गेंद नहीं चंद्रमा है सौ प्रतिशत तारे आकाश की सिगड़ी में सुलगते अंगारे नहीं सिर्फ़ तारे हैं यह रात है हू-बू-हू पूर्णिमा की रात की तरह उपमाओं के बिना भी मैं चाँद और तारों और आकाश की बात करूँगा इस रात पूरे चाँद से भरा आकाश देख कर
अगली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें