साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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जयपुर, राजस्थान
1952
चाँद एक पुरानी पीली बड़ी-सी गेंद नहीं चंद्रमा है सौ प्रतिशत तारे आकाश की सिगड़ी में सुलगते अंगारे नहीं सिर्फ़ तारे हैं यह रात है हू-बू-हू पूर्णिमा की रात की तरह उपमाओं के बिना भी मैं चाँद और तारों और आकाश की बात करूँगा इस रात पूरे चाँद से भरा आकाश देख कर
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