प्रेम की परिभाषा (कविता)

बुझा दीप हुआ अँधेरा,
मेरे मन ने मुझसे पूछा
क्या प्रेम है? क्यूँ हुआ अँधेरा?

सागर से गहरा है जो,
निल गगन तक फैला जो,
वही भक्ति, वही करुणा,
वही ममता का गागर है।

या हो, न हो ख़ून का रिश्ता,
प्रेम तो केवल आँखों में दिखता।

चाहे प्रेम हो मीरा का,
या हो गौरी शंकर का।
प्रेम सत्य है,
प्रेम अमर है,
प्रेम दीपक की ज्योति है।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 8 अगस्त, 1999
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