साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बेगूसराय, बिहार
1983
बुझा दीप हुआ अँधेरा, मेरे मन ने मुझसे पूछा क्या प्रेम है? क्यूँ हुआ अँधेरा? सागर से गहरा है जो, निल गगन तक फैला जो, वही भक्ति, वही करुणा, वही ममता का गागर है। या हो, न हो ख़ून का रिश्ता, प्रेम तो केवल आँखों में दिखता। चाहे प्रेम हो मीरा का, या हो गौरी शंकर का। प्रेम सत्य है, प्रेम अमर है, प्रेम दीपक की ज्योति है।
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