साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
1966
मैंने उसे छुआ उस तरह उतनी देर जैसे पत्ते को छूकर चुपचाप गिर जाए ओस की एक बूँद मुझे पता नहीं था ओस के गिरने के साथ इस तरह गिर जाना था पत्ते को भी।
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