साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
1850 - 1885
प्रेम प्रेम सब ही कहत, प्रेम न जान्यौ कोय। जो पै जानहि प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोय॥
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