साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मुम्बई, महाराष्ट्र
1968
मैं चाहता हूँ कि भूल जाएँ लोग मुझे सुखद आकांक्षा की तरह नहीं आऊँ उनकी स्मृति में और मिटा डालें वे अपनी चेतना की स्लेट से मेरे कर्मों-दुष्कर्मों का लेखा-जोखा चाट जाएँ दीमक मेरे पार्थिव यश जिन्हें मैंने नहीं इकट्ठा किया मैं चाहता हूँ कि भूल जाऊँ ख़ुद को ही कि शायद इसी तरह झुठला सकूँ विरासत में मिली हज़ारों साल पुरानी शर्म।
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