पुस्तक मेले (कविता)

हुईं ज्ञान से बड़ी किताबें
अर्थतंत्र के पुल के नीचे रखवाली में खड़ी किताबें

जंगल कटे किताब बनाई
लेकिन चाल ख़राब बनाई
आदम गए अक़ील आ गए
आकर अजब शराब बनाई
श्रम की पूजा करते करते मज़दूरों से लड़ी किताबें

जैसे अपना हक़ आज़ादी
ज्ञान हमारा हक़ बुनियादी
लेकिन उस तक जाने वाली
राह नहीं है सीधी सादी
नीम फ़रेबी उनवानों की बद-आमोज़ गड़बड़ी किताबें

ये कैसी तालीम हो गई
अच्छी दवा अफ़ीम हो गई
जैसे जैसे बढ़ी किताबें
दुनिया ही तक़सीम हो गई
जब दो क़ौमें मिलना चाहीं आपस में लड़ पड़ी किताबें

शब्दों के शौक़ीन झमेले
इस दुनिया के पुस्तक मेले
इसके बदले में तू दे दे
ख़ुदा हमें दो दर्ज़न केले
अगर मुदर्रिस ही खोटे हों क्या कर लेंगी सड़ी किताबें

नई किताबें नया आदमी बना सकें तो ठीक बात है
नया आदमी अधिक सभ्य हो ये थोड़ी बारीक बात है
नई किताबें मेहनत करके नए रास्तों को पहचानें
और उन्हें धनवान बनाएँ स्मृतियों में गड़ी किताबें

न हों ज्ञान से बड़ी किताबें।


यह पृष्ठ 194 बार देखा गया है
×

अगली रचना

जनादेश


पिछली रचना

अगली भाषाओं की तलाश में
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें