अहा! अहा! क्या प्यारी क़िस्मत,
जागी ख़ूब हमारी क़िस्मत।
मिली मुहब्बत उनकी जब से,
लगती है सुखकारी क़िस्मत।
महक कहाँ है क्यों पूछें हम,
जब ख़ुद है फुलवारी क़िस्मत।
ख़ुशियाँ कम हैं लेकिन लगती,
अब हर ग़म पर भारी क़िस्मत।
बहुत दिनों सोई फिर जागी,
बोले बिना दुलारी क़िस्मत।
कहा न कुछ भी किन्तु निभाई
तुम ने सच्ची यारी क़िस्मत।
नाहक कहते थे हम अंचल,
घड़ी-घड़ी बेचारी क़िस्मत।

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