लगे सताने झोपड़ियों को
भूख औ प्यास वाले दिन।
धूप है दिवस को
कचोटने लगी।
जब-तब लू हवा को
टोंकने लगी।।
जीवन में जबकि देखे हैं
कड़वे अहसास वाले दिन।
ताल हैं सूखे
औ सूखती नदी।
क्या यह है
मौसम की नेकी-बदी।।
अनहोनियों में आ गए हैं
जैसे क़यास वाले दिन।
किरणें अगर लगनें लगीं
आँच सी।
देह में चुभ रहीं
टूटे काँच सी।।
जब माँगलिक अवसर आए
भिसके संत्रास वाले दिन।

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