रास्ता पुर-ख़ार दिल्ली दूर है (ग़ज़ल)

रास्ता पुर-ख़ार दिल्ली दूर है
सच कहा है यार दिल्ली दूर है

काम दिल्ली के सिवा होते नहीं
और ना-हंजार दिल्ली दूर है

अब किसी जा भी सुकूँ मिलता नहीं
आसमाँ क़हहार दिल्ली दूर है

फूँक देता है हर इक के कान में
सुब्ह का अख़बार दिल्ली दूर है

कल तलक कहते हैं दिल्ली दूर थी
आज भी सरकार दिल्ली दूर है

सुब्ह गुज़री शाम होने आई मीर
तेज़ कर रफ़्तार दिल्ली दूर है

कौन दिल्ली से मसीहा लाएगा
ऐ दिल-ए-बीमार दिल्ली दूर है


रचनाकार : ख़ालिद महमूद
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