साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
देहरादून, उत्तराखण्ड
1911 - 1993
(1) मैं मींच कर आँखें कि जैसे क्षितिज तुमको खोजता हूँ। (2) ओ हमारे साँस के सूर्य! साँस की गंगा अनवरत बह रही है। तुम कहाँ डूबे हुए हो?
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