फागुन महीना है मस्त मस्त आला,
निकला है रंगने गोकुल का ग्वाला।
हाथों में उसके कनक पिचकारी,
जाएगी बच के कहाँ बृजबाला।
राधा ने मटकी में रंग घोल डाला,
बचने ना पाएगा गोकुल का ग्वाला।
आएगा जब वह गोविंदा बन कर,
बरसाएगी अटरिया से रंग बृजबाला।
देखी जो आते गोविंदा की टोली,
छुप गई अटरिया पर संग हमजोली।
कान्हा को पड़ गया राधा से पाला,
कुंज गली में जो आया मुरली वाला।
गीली है चुनरी अंगोछा है गीला,
चेहरा भी हो गया नीला पीला।
राधा ने डाला कान्हा ने डाला,
होली के रंग में सब रंग डाला।
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