रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै अति-पर्ब के छाए।
देखत सिंह छिपै गजराज, सो चंद छिपै है अमावस आए।
पाप छिपै हरिनाम जपे, कुलकानि छिपे है कपूत के जाए।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर कर्म छिपै न भभूत लगाए॥
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।