त्रेतायुग में आप पधारें स्वयं नारायण नर-रूप,
चैत्र शुक्ला नवमी का दिन प्यारी थी वह धूप।
राजा दशरथ जिनके पिता कौशल्या थी माता,
हर्षित थे सब नर-नारी देखकर उनका स्वरूप।
पावन धरा थी अयोध्या और सूर्यवंशी परिवार,
बैकुंठ धाम छोड़कर आएँ दशरथ जी के द्वार।
ढोल-नगाड़े बजीं सहनाई ख़ुशियाँ थी भरमार,
धरा पे आकर किया आपनें जनता का उद्धार।
जनक दुलारी संग विवाह रचाया प्रभु श्री राम,
अपनें वचन पर अडिग रहें किएँ अद्भुत काम।
जीवन में अनेक मोंड़ आएँ, आएँ उतार चढ़ाव,
पीछे मुड़कर ना देखा कुछ भी हुआ परिणाम।
शबरी के झूठें बैर खानें, चलकर आएँ प्रभु घर,
इतिहास गवाह है राम नाम से तैर गएँ पत्थर।
अहिल्या को श्रापमुक्त किया दिया रूप सुन्दर,
केवट का उद्धार कर उसे बनाया अपना मित्र।।
राजा रामचंद्र को पाकर प्रजा थी सुखी प्रसन्न,
दूर-दूर से आतें यात्री जिनके करनें को दर्शन।
एक से बढ़कर एक राम भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न,
आज हर हृदय में आप बसें अमीर या निर्धन।।
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