इंसानियत के नाते मैं हाथ जोड़ता हूँ,
इंसान ग़ैर से भी 'राम-राम' करता हैं।
मेरी पेशानी पे कोई हसीं हर्फ़ लिखा हैं,
बस उसी के नाम कवि ग़ज़ल रचता हैं।
वो सोचता हैं मास्टर हूँ, डर जाऊँगा,
कैसे बताऊँ मुझमें एक राजा रहता हैं।
बड़ी ज़िल्लत कमाई मैंने उस घर में,
जिनके बेटे को कवि सीख कहता है।
सुना था पत्नी के गाँव इज़्ज़त होती हैं,
कर्मवीर इस पनघट पर प्यासा रहता हैं।
शिक्षा किसी को न दो, गर कोई कहें,
हाथी उड़ता हैं तो कहो, हाँ, उड़ता है।

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