राम-राम (कविता)

इंसानियत के नाते मैं हाथ जोड़ता हूँ,
इंसान ग़ैर से भी 'राम-राम' करता हैं।

मेरी पेशानी पे कोई हसीं हर्फ़ लिखा हैं,
बस उसी के नाम कवि ग़ज़ल रचता हैं।

वो सोचता हैं मास्टर हूँ, डर जाऊँगा,
कैसे बताऊँ मुझमें एक राजा रहता हैं।

बड़ी ज़िल्लत कमाई मैंने उस घर में,
जिनके बेटे को कवि सीख कहता है।

सुना था पत्नी के गाँव इज़्ज़त होती हैं,
कर्मवीर इस पनघट पर प्यासा रहता हैं।

शिक्षा किसी को न दो, गर कोई कहें,
हाथी उड़ता हैं तो कहो, हाँ, उड़ता है।


लेखन तिथि : 15 नवम्बर 2024
यह पृष्ठ 230 बार देखा गया है
×

अगली रचना

शुभ दिवस दिवाली


पिछली रचना

आँखों में नमी हैं
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें