लो आया फिर रंगों का त्यौहार,
गीत ख़ुशी के सब गावो मल्हार।
पक्के रंगों से होली नहीं खेलना,
गुलाल लगाकर मनाना त्यौहार।।
अब ना रहा पहले जैसा हुड़दंग,
हँसी और मज़ाक सहने का दम।
अब नहीं बजाते कोई ढोल चंग,
लगे है सब इन मोबाइलों मे हम।।
अब नहीं है पहले जैसा स्वभाव,
उमंग व रंग लगाने का व्यवहार।
नहीं आते परदेशी भी अपने घर,
ये रिश्ते भूल रहे अपने परिवार।।
दिल की कड़वाहट मिटालो सब,
इन्सानियत का पाठ पढ़लो अब।
गिले-शिकवे भूल कर गले लगो,
अभद्रता से होली खेलो ना अब।।
फाल्गुन मास में आता यह पर्व,
जीवन शिक्षा का रंग भरो अब।
अनेकता में एकता दर्शाता पर्व,
भाई चारा संदेश पहुँचाओं सब।।

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