साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
लगता है मरुथल- रेत का बिछौना। दूर-दूर तक नहीं दिखता है जल। नज़र नहीं आ रहे पंछी के दल। व्यर्थ है यहाँ- हरियाली का बोना। दिखते केवल ऊँटों के- क़ाफ़िले। इसी टोह में आबशार- तो मिले। वक़्त गोया मुट्ठी की- रेत होना।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें