रोए क़ाबिल हाथ (कविता)

साधो न्याय जबर का खेल
सभी सफल हैं सभी विजेता बाक़ी सारे फ़ेल

उसने उनको फ़ोन कर दिया उसने उनको चिट्ठी
लिख दी भैया बंद हो गई सबकी सिट्टी पिट्टी
रोए क़ाबिल हाथ क़ौम की मुरझा गई गुलेल

काले धन के मकड़जाल में सारी सत्ता आई
न्यायभवन में पोल वकीलों की गुणवत्ता लाई
संविधान के घटाटोप में दंड रहे हैं पेल

बाबा निर्धन भिक्षु रहे सो बाप भए चपरासी
ना खेती ना आरच्छन फिर कुल भी सत्यानासी
टीकाराम मिसिर की ख़ातिर देस हो गया जेल

सदियों से जो शोषक थे वे ही शोषित बन बैठे
पिछड़ेपन की लूट मची सारे घोषित बन बैठे
अपराधों के नंगनाच में बुद्धि हुई बेमेल

बेहिसाब दीनार कहीं डॉलर की खड़ी क़तारें
प्रगतिशीलता सिद्ध जरायमपेशा लोग बघारें
इसी हुनर में इंक़लाब की लगी हुई थी सेल


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