ग़म हैं आज हज़ारों यारों,
पर रोने से भी क्या होगा?
करनी हैं गर ख़्वाहिशें पूरी,
तो सोने से भी क्या होगा?
प्रेम किया है प्रेम ही करते रहेंगे,
बीज नफ़रत के बोने से भी क्या होगा?
बिन पानी फ़सल जल राख हुई,
अब बरसात होने से भी क्या होगा?
सिद्धि के लिए मेहनत तो करनी होगी,
यूँ ख़्वाब सँजोने से भी क्या होगा?
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