खुली किताब से धूल झाड़ लो तो पूछो,
नई सुबह का आग़ाज़ देख लो तो पूछो।
कहीं कुछ भूल तो नही गए हो घबराहट में तुम,
ज़रा भूल को सुधार लो तो पूछो।।
नहीं ज़िद मेरी तुम्हे मनाने की,
ना ही ये ज़िद तुम्हे समझने और समझाने की।
बस प्रयास है रोशनी से रू-ब-रू हो जाओ तुम,
ज़रा खिड़कियाँ खोल लो, तो पूछो।।
कहीं छूटा हुआ सपना, छूटा न रह जाए,
कहीं रूठा हुआ अपना, रूठा न रह जाए।
दिल की बेचैनी पर एक तंज़ ख़ुद कसो तुम,
फिर हौले से किवाड़ खोल लो, तो पूछो।।
कोई दस्तक देता है तो उसे आने को कहो,
ख़ैरियत पूछो और बैठ जाने को कहो।
रौशनी मुक़म्मल दोनों तरफ़ से आएगी,
ज़रा दोनों तरफ़ के रोशनदान खोल लो, तो पूछो।।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
