तुम मुझे अच्छी लगती हो
इसलिए नहीं—
कि तुम्हारी मुस्कान में
है दिशाओं के खुलने की-सी उजास
कि तुम्हारी नज़रों में
है गुनगुनी धूप की-सी चमक
कि तुम्हारी चाल में
है लहराती हुई खड़ी फ़सल-सी लोच
कि तुम्हारी सुंदरता में
है षड्ऋतुओं के विविध रंग
बल्कि इसलिए
कि साहस है तुम्हारे भीतर
ग़लत को ग़लत कहने का
सड़ी-गली और पक्षपाती
रूढ़ियों एवं परंपराओं को
तोड़ने का
अत्याचार-अन्याय के ख़िलाफ़
खड़े होने का
विसंगति एवं विद्रूपताओं पर
प्रश्न खड़े करने का।