साजन आ जाओ (गीत)

लगे इक, दिन है बरस हज़ार
कि साजन आ जाओ एक बार
होठ की लाली कान का झुमका यौवन भरी हिलोरे
साजन तेरे बिना ये सारा फीका है शृंगार
कि साजन आ जाओ इक बार...

रातें काल कोठरी जैसी दिन है रात अमावस
होठों पर मरुथल का बसेरा, आखों में है पावस
तन मन बिकल हुआ है सारा, टेर-टेर कर तुमको
ख़ुद को धीर बॅंधा लेती पर बच्चों का मन बेबस
बच्चों हित उपहार सजन थे होली में जो लाए
देख-देख उपहार वही फिर रो देते हर बार
कि साजन आ जाओ...

यशुदा माँ की डबडब अंखिया अब भी पंथ निहारे
बहन द्रोपदी थाल सजाए खड़ी हुई है द्वारे
वही रूप है वही रंग है वही साज है सारे
कहाँ गए हो प्रियतम प्यारे लेकर साथ बहारे
हे छलिये अब तुम्ही कहो हम किससे बिरह सुनाए
टेर-टेर कर तुमको प्रियतम अधर गए हैं हार
कि साजन आ जाओ...

छोटा मुन्ना तस्वीर देखकर गुमसुम सा रहता है
सरहद पर जाने को मुझसे हरदम जिद करता है
पापा के जैसे ही तन पर वर्दी को धारुँगा
मातृभूमि के सारे दुश्मन को चुन चुन कर मारूँगा
हाय हमारा जियरा प्रियतम धीर नहीं अब धरता
कहता बिन प्रतिकार पिता के जीना है धिक्कार
कि साजन आ जाओ...

लगे इक, दिन है बरस हज़ार
कि साजन आ जाओ एक बार
होठ की लाली कान का झुमका यौवन भरी हिलोरे
साजन तेरे बिना ये सारा फीका है शृंगार
कि साजन आ जाओ इक बार...


रचनाकार : सुशील कुमार
लेखन तिथि : 12 जनवरी, 2025
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