उसने दोनों हाथों से मेरे कंधे पकड़ लिए
और मुझे पेड़ की डाल की तरह हिलाया
मुझे याद है
मैं बेहोश नहीं था,
मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया
लेकिन मैंने कुछ कहा भी नहीं
तब उसने निर्लिप्त खुली हुई
मेरी आँखों में पढ़ने की कोशिश की
तब जब मैं स्मृति में खोया हुआ था।
लेकिन उसने इतना तो जान लिया।
कि मैं मरा नहीं, ज़िंदा था।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।