सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे (गीत)

सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे,
धरती की माँग भर जल किसान गीत गाए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

खेतों में बीज पड़े, दानों ने मुँह खोला,
बागों में फूल खिले, धरती का मन डोला,
दुल्हन सी धरती, आज सजी जाए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

ओढ़ हरी ओढ़नी, धरा उठी झूम झूम,
बादल ने जी भर के, धरती को लिया चूम,
श्यामघन पास देख राधा शर्माए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

बगिया जवान हुई, मोगरा गुलाब फूले,
सखियों संग गाँव की, गोरी झूला झूले,
हौले से बगिया का माली मुस्काए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

प्रेम गीत फूट पड़े, गाँव गली घर से,
तन भीगे, मन भीगे, बदरा ज्यों बरसे,
सावनी फुहार से जियरा भरमाए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

उमड़ घुमड़ मेघों ने, धरती के गाए गीत,
बनी ठनी धरा कहे, आज मेरे आए मीत,
माटी के तन मन की प्यास बुझी जाए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।

जल से भरपूर हुए, नदी, ताल, पोखर,
घास उगी हरे हुए, गाँंव के चरोखर,
गौओं के स्तन से दूध बहा जाए रे,
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे।


लेखन तिथि : 1966-1967
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