सहपाठी (कविता)

वह मेरे साथ पढ़ता था

खाने की छुट्टी में
अपने डब्बे खोलकर
टूट पड़ते थे जब भूखे पशु की तरह
हम सब खाने पर
हमारी आँखों से बचते हुए
आहिस्ता-आहिस्ता वह नल के पास जाता था
और उसमें मुँह लगा देता था

मैं अक्सर देखता था
आती थी फ़ीस की तारीख़
जैसे-जैसे बहुत क़रीब
उसका ख़ून सूखता जाता था

किताब नहीं लाने पर
वह कई दफ़ा कुकड़ूँ-कूँ बोल चुका था
न जाने फिर भी क्यों
वह कक्षा में सबसे पहले आता था

गंदी क़मीज़ पहनने के कारण
उसे स्कूल से लौटा दिया गया
एक दिन घर
उस दिन के बाद स्कूल में
मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा

एक झुलसती दोपहर में
वह बैठा दिखाई दिया मुझे
एक बन रही इमारत के क़रीब
उसके पास सीमेंट का एक ख़ाली तरल था
और खरोंच रहा था नाख़ून से वह
अपनी गदोली में बना काला तिल


रचनाकार : विनोद दास
यह पृष्ठ 233 बार देखा गया है
×

अगली रचना

दोपहर


पिछली रचना

नए अन्न की आहट
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें