विचलित साँसो की सरगम,
नयनों के समक्ष बिखरा तम।
असह्य वेदना आंतरिक द्वंद,
धर्म व कर्तव्य का यह संगम।
समय रेत सा फिसला जाता,
आँखों से आँसू बह न पाता।
मन निःशब्द हुआ आज प्रिय,
काश विरह का क्षण न आता।
भार्या तेरे गर्भ में स्वप्न हमारे,
आज दांपत्य प्रेम को विसारे।
राष्ट्रहित में अब प्रस्थान मेरा,
बढ़ रहे प्रिय दायित्व तुम्हारे।
पाषाण नहीं है हृदय हमारा,
राष्ट्र के प्रति है सर्वस्व वारा।
मेरा आलंबन प्राणप्रिया तुम,
तुमसे ही मेरा मनोबल सारा।
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