साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
1850 - 1885
सखी मन-मोहन मेरे मीत। लोक वेद कुल-कानि छांड़ि हम करी उनहिं सों प्रीत॥ बिगरौ जग के कारज सगरे उलटौ सबही नीत। अब तौ हम कबहूं नहिं तजिहैं पिय की प्रेम प्रतीत॥ यहै बाहु-बल आस यहै इक यहै हमारी रीत। ‘हरीचंद’ निधरक बिहरैंगी पिय बल दोउ जग जीत॥
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