समय का पहिया (गीत)

समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले!
फ़ौलादी घोड़ों की गति से आग बर्फ़ में जले रे साथी!
समय का पहिया चले!

रात और दिन पल-पल छिन-छिन आगे बढ़ता जाए!
तोड़ पुराना नए सिरे से सब-कुछ गढ़ता जाए,
पर्वत-पर्वत धारा फूटे लोहा मोम-सा गले रे साथी!
समय का पहिया चले!

धरती डोले, सूरज डोले, डोलें चाँद सितारे
डोलें गढ़ औ’ क़िले दमन के, डोले शासक सारे,
तूफ़ानों के बीच अमर जीवन का अंकुर पले रे साथी!
समय का पहिया चले!

उठा आदमी जब जंगल में अपना सीना ताने
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर पहिया लगा घुमाने,
मेहनत के हाथों से आज़ादी की सड़कें ढले रे साथी!
समय का पहिया चले!


रचनाकार : गोरख पांडेय
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