कथा की प्रासंगिकता,
कथ्य के प्रभावशाली होेने से है।
शब्दों का जीवंतता,
गहरे भाव बोध से होता है।
जीवन की अर्थग्राह्यता,
मुक्ति की दिशा से होती है।
और प्रेम की व्यापकता
हृदय विस्तार से है।
कथा, शब्द, जीवन, मुक्ति
क्या सम्पूर्ण मनुष्यता की सीमा नहीं हैं!
जिससे सभी ज़िंदगियाँ गुज़रती हो।
विचारों की अनसुलझी डोर,
मन को कुंठित औ मस्तिष्क को;
पंगु बना देती है।
अविश्वास, शंका और भ्रम
रिश्तों की बुनियाद को,
तार-तार कर देते हैं।
जिसे पुनः सँजोना,
पानी पर लकीर खींचने जैसा हो जाता है।
मन में संदेह ही क्यों?
जो कुरेदता रहे हृदय को!
रिश्तों में अविश्वास ही क्यों?
जो हृदय में ग्रंथि पैदा करे।
प्रेम और सौहार्द से
कुटिल हृदय भी विजित होता है।
मन में भ्रम और हृदय में
ग्रंथि पालने से नहीं।
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