सज धज पतंगे कहाँ को चले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।
निकला है घर से फिर इक दीवाना,
कहता है मुझको मोहब्बत निभाना।
अरमाँ ये दिल में कैसे पले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।
शमा के लिए वो कुछ और ही है,
ये तो ज़माने का इक तौर ही है।
शमा के लिए तो इक दौर आना,
शमा के लिए तो इक दौर जाना।
समझो नहीं तुम इसको फ़साना,
मिट जाएगा फिर इक दीवाना।
एक से अब दो ही भले हैं,
समझाया हमने कि हम भी जले हैं।
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