समरस जीवन सहज हो (दोहा छंद)

अरुणिम आभा भोर की, खिले प्रगति नवयान।
पौरुष परहित जन वतन, सुरभित यश मुस्कान॥

नवयौवन नव चिन्तना, नूतन नवल विहान।
नव उमंग सत्पथ रथी, बढ़े राष्ट्र सम्मान॥

राष्ट्र धर्म कर्त्तव्य मन, मर्यादा रख ध्यान।
बढ़ें शान्ति सद्भावना, लोकतंत्र सम्मान॥

सबके प्रति सम्मान हो, सबमें हो सहयोग।
खिले प्रकृति सुरभित प्रगति, बने स्वच्छ नीरोग॥

बिना प्रदूषित देश हो, सहनशील जनतंत्र।
परहित हो संवेदना, शिक्षा जीवन मंत्र॥

समरस जीवन सहज हो, संयम मनुज स्वभाव।
धीर वीर साहस प्रखर, हो सहिष्णु हर घाव॥

शिक्षित नर नारी सभी, प्रगतिशील हो सोच।
मानवता सद्नीति रथ, हों विचार मन लोच॥

सर्वधर्म सम्मान हो, अपनापन हिय भाव।
संविधान ही मंत्र हो, क्षमादान हो छाव॥

मातु-पिता गुरु श्रीचरण, श्रद्धा सेवा मान।
ईश्वर परायण बनें, तजें मिथक अभिमान॥

अरुणोदय आशा प्रगति, सदाचार अभिराम।
भक्ति प्रीति मन मीत बन, तभी राष्ट्र सुखधाम॥


लेखन तिथि : 9 अक्टूबर, 2021
यह पृष्ठ 311 बार देखा गया है
×

अगली रचना

परिवर्तन जीवन कला


पिछली रचना

माँ मेरी है प्रेरणा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें