समुद्र पर हो रही है बारिश (कविता)

क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का

कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं
क्या पता
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ़ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे

कैसे पुकारे
मीठे पानी में रहने वाली मछलियों के
प्यासों को क्या मुँह दिखाए
कहाँ जाकर डूब मरे
ख़ुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश

नमक किसे नहीं चाहिए
लेकिन सबकी ज़रूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोए

क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरुद्ध
उसके उछाल की सज़ा है यह
या धरती से तीन गुना होने की प्रतिक्रिया

कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों में नमक है या नहीं

नमक नहीं है उसके स्वप्न में
मुझे पता है
मैं बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी की
इच्छा के बारे में सोचता हूँ

पछाड़ें खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर में समुद्र

अभी-अभी बादल
अभी-अभी बर्फ़
अभी-अभी बर्फ़
अभी-अभी बादल।


रचनाकार : नरेश सक्सेना
यह पृष्ठ 190 बार देखा गया है
×

अगली रचना

आघात


पिछली रचना

सीढ़ियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें