साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रायगढ़, छत्तीसगढ़
1965
सीढ़ियाँ हैं किताबें छत की ओर जाती हुईं ग़ायब हो जाती हैं छत पहुँचने से ठीक पहले जैसे कहती हों सीढ़ियाँ— कोई काम नहीं छत पर मेरा रेंगती हुई धरती उड़ता हुआ आकाश देखना हो तो किताबें नहीं आँखें ही औज़ार।
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