शाने का बहुत ख़ून-ए-जिगर जाए है प्यारे (ग़ज़ल)

शाने का बहुत ख़ून-ए-जिगर जाए है प्यारे,
तब ज़ुल्फ़ कहीं ता-ब-कमर जाए है प्यारे।

जिस दिन कोई ग़म मुझ पे गुज़र जाए है प्यारे,
चेहरा तिरा उस रोज़ निखर जाए है प्यारे।

इक घर भी सलामत नहीं अब शहर-ए-वफ़ा में,
तू आग लगाने को किधर जाए है प्यारे।

रहने दे जफ़ाओं की कड़ी धूप में मुझ को,
साए में तो हर शख़्स ठहर जाए है प्यारे।

वो बात ज़रा सी जिसे कहते हैं ग़म-ए-दिल,
समझाने में इक उम्र गुज़र जाए है प्यारे।

हर-चंद कोई नाम नहीं मेरी ग़ज़ल में,
तेरी ही तरफ़ सब की नज़र जाए प्यारे।


रचनाकार : कलीम आजिज़
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