शहर आ गया (कविता)

सारी रात चलने के बाद
सुबह एक पहर दिन चढ़ा होगा
जब बस की खिड़की से दिखाई पड़ा
सड़क के बीचोंबीच
कुचलकर मरा एक कुत्ता
मैं समझ गया—आ गया शहर।

कुत्ते का क्षत-विक्षत शव छितराया हुआ
और उस पर टायर के साफ़-साफ़ निशान
नए टायर लगे होंगे उस गाड़ी में
हमसे आगे निकल गई होगी वह शहर

एक मूँछवाले ख़ानदानी हकीम का
पोस्टर दीखा—मर्दानगी के वास्ते
किनारे की दीवार पर
आधा फर्लांग लंबी लिखावट थी—
हाजमा दुरुस्त रखने की रामबाण दवा

कुछ सूअर लोट रहे थे
कीचड़भरे एक पोखरनुमा सड़े हुए पानी में
बस का हॉर्न बजा ज़ोर से
सड़ी हुई हवा का एक भभका आया खिड़की की ओर से
सवारियों ने लंबी साँस छोड़ी—
शहर आ गया।


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