शराब के नशे में (कविता)

शराब के नशे में धुत्त एक आदमी
दुतकारता है ज़िंदगी को
कहता है लौट जाऊँगा
मैं अपने घर

तीन आँगन वाले अपने घर
वहाँ धूप होगी
सकुचाती हुई
चूमती हुई माथा
उतरेगी शाम

शराब के नशे में धुत्त आदमी
अपने रतजगे में बुहारता है
सबसे ठंडी रात को
पृथ्वी से बाहर

वह लिखता है इस्तीफ़ा
पढ़ता है ऊँची आवाज़ में
मुझे तबाह नहीं करनी अपनी ज़िंदगी
लानत भेजता हूँ ऐसी नौकरी पर
सुबकते हुए कहता है
लौट जाऊँगा अपने गाँव
खटूँगा अपने खेतों में
चुकाऊँगा ऋण धरती का

दिन की रौशनी में
स्कूल बस पर बेटी को बिठाने के बाद
वह पत्नी की आँखों में आँखें डालकर
क़सम खाता है
वह शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा

मुस्कुराती हुई पत्नी को
वह दुनिया की
सबसे ख़ूबसूरत औरत कहता है
और चला जाता है...
काम पर


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