तुम्हें कर जोड़कर माँ शारदे प्रणाम करता हूँ।
हमें सुरताल दो माता तुम्हारा ध्यान करता हूँ।
मिटाकर द्वेष माँ मेरे ह्रदय में प्रीत तू भर दे।
नहीं साहित्य में हारूँ हमेशा जीत तू कर दे।
पढूँ नित काव्य को प्रतिदिन सदा रसपान करता हूँ।
हमें सुरताल दो माता तुम्हारा ध्यान करता हूँ।
लिखें उद्गार क्या दिल से हमें नव भाव माँ दे दे।
चले जो अनवरत मेरी कलम को धार वो दे दे।
शुरू नित काव्य से पहले सदा गुणगान करता हूँ।
हमें सुरताल दो माता तुम्हारा ध्यान करता हूँ।
चलूँ नित सत्यपथ पे ही करूँ शुभ कर्म ही मैया।
सफल हो लेखनी मेरी करे भव पार तू नैया।
बड़ा मतिमंद मूरख हूँ कि अक्षरज्ञान करता हूँ।
हमें सुरताल दो माता तुम्हारा ध्यान करता हूँ।
तुम्हें कर जोड़कर माँ शारदे प्रणाम करता हूँ।
हमें सुरताल दो माता तुम्हारा ध्यान करता हूँ।
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