कितने अरसे बीत गए!
लड़ते-झगड़ते
रूठते और मनाते हुए,
ना तुम बदली!
ना मैं ही बदला।
वो संयोग पक्ष के लम्हें,
आज भी यथावत् हैं।
ना तुम मिली!
ना मैं मिल सका
पर, हमारा प्रेम
आज भी हक़ीक़त है।
तुम्हारे होने से,
मेरे होने की कल्पना है।
मेरा हर एक लम्हा,
तेरे जीवन से आबद्ध है।
मेरी सुबह, मेरा शाम
मेरी निद्रा, मेरी चेतना
सब में तुम समाहित हो
गेंदें के फूल-सा
तेरे तन की ख़ुशबू,
मेरे रोम-रोम को पुलकित
और महकाती है।
जिससे हमारा संबंध!
और भी मधुर औ जीवंत बनता है।
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