शीश महल (कविता)

पारदर्शी हो
जो कुछ न छुपाता हो
अंदर बाहर एक समान
एक खुली किताब की तरह।
जैसे–
आत्मा
जिसमें न घात न प्रतिशोध हो
केवल प्रेम हो
दया परोपकार हो
सकारात्मक चिंतन हो
जो ह्रदय में है
वही कर्म में हो
सब कुछ स्पष्ट
जैसे–
शीश महल।


  • विषय :
लेखन तिथि : 25 अगस्त, 2022
यह पृष्ठ 150 बार देखा गया है
×

अगली रचना

मटके का पानी


पिछली रचना

रावण वध


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें