शुरू नॉविल किया पढ़ना लगा वो रहबरी वाला,
सफे दो चार पलटे थे कि निकला रहज़नी वाला।
गुज़ारिश है यही चश्मा हमें धुँधला कोई दे दो,
कि आँखें छीन सकता है ज़माना रोशनी वाला।
शज़र को हम उगाएँ और चिंता छोड़ दें फल की
कभी तू पूछना मीरा, कहे क्या बाँसुरी वाला।
यहाँ तालीम पाने का जिसे हक़ ही न हासिल था,
कहो कैसे लिखा उसने फ़साना राम जी वाला।
महज़ दाढ़ी बढ़ाने से नहीं होता कोई टैगोर,
दिलों में लाज़मी है, आदमी वो काबुली वाला।
अगर बातें हुई उनसे न जाने क्या हश्र होगा,
हमें सोने नहीं देता वो लम्हा ख़ामुशी वाला।
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