साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश
1977
स्वर्ण की ज़ंजीर बाँधे, स्वान फिर भी स्वान है। धूल धूषित सिंहनी, पाती सदा सम्मान है। आत्मनिर्भर स्वाभिमानी, शौर्य ही पहचान है। हार ना स्वीकारती, जाती भले ही जान है। मान ख़ातिर प्राण देती, सहती न वह अपमान है। वीरता ही धर्म उसका, शौर्य ही ईमान है। शत्रु भय से वह कभी, होती नही हैरान है। परिभाषा उसी से शौर्य की, सच सिंहनी महान है।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें