सीता (कविता)

जनक सुता सुकुमारी
राम की अर्धांगिनी,
सुंदर, सुशीला
सिद्धांतों की पुजारिन।
बेटी धर्म निभाया
पिता का मान बढ़ाया
पत्नी धर्म निभाने की ख़ातिर
क्या क्या कष्ट उठाया।
सुख की चाह किए बिना
पति के साथ वन प्रस्थान किया
दशरथ की बहू ने
कितने कितने कष्ट सहा।
फिर भी मन मलीन न हुआ
पति संग में ही हर्ष मिला।
लंका में रहकर भी
पतिव्रत धर्म का पालन किया।
पति के आदेश का न प्रतिरोध किया
गर्भकाल में भी वन जाना स्वीकार किया
माँ का फ़र्ज़ भी हँसते हुए निभाया,
सतीत्व परीक्षा से व्याकुल
धरती माँ की गोद में
अपना स्थान पाया,
राम के साथ नाम जुड़ा
पर राम से पहले सीता नाम आया,
सीताराम नाम मंत्र बन गया
सीता नाम अमर हो गया।


लेखन तिथि : 17 अप्रैल, 2022
यह पृष्ठ 398 बार देखा गया है
×

अगली रचना

मेरे राम


पिछली रचना

जब तक है ज़िंदगी
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें