सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता (ग़ज़ल)

सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता

गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में
मिरे क़ातिल हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा ऐसे नहीं होता

जहान-ए-दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें
यहाँ पैमान-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा ऐसे नहीं होता

हर इक शब हर घड़ी गुज़रे क़यामत यूँ तो होता है
मगर हर सुब्ह हो रोज़-ए-जज़ा ऐसे नहीं होता

रवाँ है नब्ज़-ए-दौराँ गर्दिशों में आसमाँ सारे
जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका ऐसे नहीं होता


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