स्मरणीय भाव (कविता)

वंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अभिमानी हों।
बांधवता में बँधे परस्पर, परता के अज्ञानी हों।
निंदनीय वह देश, जहाँ के देशी निज-अज्ञानी हों।
सब प्रकार पर-तंत्र, पराई प्रभुता के अभिमानी हों॥


रचनाकार : श्रीधर पाठक
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