सुभद्रा कुमारी चौहान (कविता)

हे कोकिल! हिन्दी की विदुषी,
और राष्ट्र चेतना की सरिता।
है नमन तुम्हें करता भारत,
हे! काव्य साधिका हे! नमिता।

तुम स्वयं वेदना की पुकार,
तुम व्योम काव्य का हो अनंत।
तुमने दिखलाया है जग को,
वीरों का कैसा हो वसंत।

तुम देशप्रेम की हो ज्योति,
तुम स्वयं प्रतीक्षा तारों की।
तुम स्वयं कदंब का पेड़ यहाँ,
तुम स्वयं कहानी हारों की।

तुमने लिख झाँसी अमर किया,
और रानी का यशगान लिखा।
हो गया अमर बुन्देलखण्ड,
तुमने गौरव सम्मान लिखा।

तुम स्वतंत्रता की काव्यसुता,
तुम महीयसी हो सरस्वती।
तुम महादेवी की प्रिये सखी,
तुम स्वयं त्रिधारा मुकुल कृति।

बन राष्ट्र चेतना की धारा,
बहना तुम नित बन कालिंदी।
साहित्य तुम्हारा अमर रहे,
और सदा ऋणी तेरी हिन्दी।


लेखन तिथि : 16 अगस्त, 2022
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