सुहागरात (कविता)

गाना गाकर
बांद्रा यार्ड के बिल में रहने वाले चूहे ने
सपने दिखा झोंपड़पट्टी की चुहिया को पटाया
विधिवत किया ब्याह और साथ चले
हाथों में हाथ डाल
बांद्रा यार्ड का देखकर विस्तार
दंग रह गई चुहिया
सामने खड़ी नई लोकल देख पूछा
तुमने मेरे लिए बनाया इतना बड़ा बिल

बनाया नहीं रे,
आई है स्वीट्ज़रलैंड से
देख कैसी सजी है सुहाग की अपनी सेज
चुहिया ने जी भर देखा
और ख़ुश हो
चूहे की गर्दन से लटक गई

अभी शुरू भी नहीं हुआ
उनका प्रेमालाप
कि धम्म से गिरा डिब्बे में कुछ

फिर गिरा,
फिर गिरा,
और गिरता रहा देर तक

क्यों बरस रहे हैं
इतने बड़े और बेडौल पत्थर
क्या बिल नहीं चुकाया इसका

कैसे बताए चूहा
कि एक की जगह कैसे सवार होंगे ग्यारह लोग
यह जाँचने के लिए वज़न
कई दिनों तक लादकर पत्थर और ईंट
रात के अँधेरे में ले जाएँगे
हर दिन कुछ जोड़ेंगे
कुछ घटाएँगे
तब बनेगी यह लोकल मुंबई की
और तू चुहिया इस चूहे की

यह मुंबई है मेरी जान
यहाँ यथार्थ के पत्थर
शांति से सुहागरात भी नहीं मनाने देते


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