सुहाना है सफ़र अब तो,
नहीं होगी ख़बर अब तो।
जिसे नादान समझे थे,
वही लगता जबर अब तो।
ज़माना इस तरह बदला,
डराता हर बशर अब तो।
लगा है हर गली कूचे,
घृणा का ही शजर अब तो।
कफ़न ओढ़े हुए हैं क्यों,
दिवस के हर पहर अब तो।
कलेजा मुँह को आता है,
दिखा मुर्दा शहर अब तो।
कहीं पे बाढ़ आफत है,
प्रकृति ढाती क़हर अब तो।
लेखन तिथि : 15 दिसम्बर, 2019
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अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 1222 1222