साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
1896 - 1961
सुख का दिन डूबे डूब जाए। तुमसे न सहज मन ऊब जाए। खुल जाए न मिली गाँठ मन की, लुट जाए न उठी राशि धन की, धुल जाए न आन शुभानन की, सारा जग रूठे रूठ जाए। उलटी गति सीधी हो न भले, प्रति जन की दाल गले न गले, टाले न बान यह कभी टले, यह जान जाए तो ख़ूब जाए।
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