साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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दिल्ली, दिल्ली
1955
सुंदरता के बारे में मैं जो भी कहूँगा वह भूख में एक टुकड़ा होगा सुंदरता के बारे में मैं जो भी कहूँगा वह प्यास में एक बूँद होगी सुंदरता के बारे में जो भी कहूँगा वह अँधेरे में उजाले की एक किरण होगी सुंदरता के बारे में जो भी कहूँगा वह गायक के कंठ में करुणा में भीगा एक स्वर होगा
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