सुनो (कविता)

जहाँ ख़त्म होता है कोई जीवन,
एक नया शुरू होता है वहीं से
एक बूढ़े की अंतिम साँसों को
सुन रहा होता है उसका पोता या नाती आज भी

वह पूर्वजों से जुड़ा होता है किस तरह
हम नहीं जानते
उसकी हड्डियों में जो कुछ बोलता रहता है ताउम्र
वह पूर्वजों का काव्य-संगीत ही होता है

कविता को जीवाश्मों से ताज़ा हड्डियों तक सुनो!
आने वाले समय की कविता की पहचान
कोई आलोचक इस तरह भी करेगा

मुझ आदिवासी कवि को नहीं लगता।


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