स्वाभाविक जीवन (कविता)

एक व्यक्ति विफलता से बना है
और इसमें कोई ख़ास बात नहीं है
ख़ास बात इसमें है कि वह
सफलता से कैसे बचा

सफलता जब प्यार और सुरक्षा का रूप धरकर आई
तो उसने कैसे छाँटा वितंडा

ममता और आकर्षण के झाँसों से निकलकर
उसने अकेले रहना
और समूह में काम करना कैसे सीखा

प्रशंसा के सामने
अपना एकांत कैसे बचाया

यश और प्रसिद्धि के रास्ते से बचते हुए
कैसे गया दुखियारों की राह पर

गुमनामी में सुकून से रहते हुए
उसके जीवन से गुज़रते हैं दुख-सुख
धूप और छाया की तरह

वह पृथ्वी पर रहता है मिट्टी की तरह
न इससे कम
न इससे ज़्यादा।


रचनाकार : शुभा
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